Thursday, December 20, 2018

एक सिक्के की कीमत


गांधीजी चरखा संघ के लिए धन इकट्ठा करने के उद्देश्य से देश भर में भ्रमण कर रहे थे। एक दिन उड़ीसा के एक आदिवासी क्षेत्र में उनकी सभा चल रही थी। श्रोताओं के बीच एक वृद्ध महिला भी थी जिसके बाल सफेद हो चुके थे, कपड़े फटे हुए थे और कमर झुकी थी। गांधी जी के भाषण से वह बहुत प्रभावित हुई। भाषण समाप्त होने के बाद वह महिला किसी तरह भीड़ में रास्ता बनाती हुई गांधीजी के पास तक पहुंची। उसने सबसे पहले अपनी साड़ी के पल्लू में बंधा तांबे का एक सिक्का निकाला और गांधीजी के चरणों में रख दिया। गांधीजी ने सावधानी से सिक्का उठाया और उसे अपने पास रख लिया। उस समय चरखा संघ का कोश जमनालाल बजाज संभाल रहे थे।

बजाज ने हंसते हुए वह सिक्का मांगा, पर गांधी जी ने उस वृद्ध महिला का दिया सिक्का उन्हें देने से इनकार कर दिया। जमनालाल जी ने कहा, ‘मैं चरखा संघ के लिए हजारों रुपये के चेक संभालता हूं। अभी आप मुझ पर एक तांबे के सिक्के के लिए भी भरोसा नहीं कर रहे हैं। एक तांबे के सिक्के के लिए आपकी चिंता मुझे परेशान कर रही है।’ इस पर गांधी जी ने अपने मन के उद्गार को व्यक्त करते हुए कहा, ‘यह सिक्का हजारों से कहीं अधिक कीमती है। यदि किसी के पास लाखो हैं तो वह दो हजार देता है और उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन यह सिक्का शायद उस औरत की कुल जमा पूंजी थी।

गांधीजी ने जमलालाल बजाज को समझाते हुए कहा कि उस वृद्ध महिला ने अपना सारा धन दान दे दिया। कितनी उदारता दिखाई, उसने कितना बड़ा बलिदान किया। इसलिए इस तांबे के सिक्के का मूल्य मेरे लिए एक करोड़ रुपये से भी अधिक है, यह अमूल्य है। इसकी कोई कीमत नहीं है। मैं इसे अपने पास रखना चाहता हूं ताकि मुझे हमेशा उस महान दान की याद बनी रहे।’

संकलन : सुरेंद्र अग्निहोत्री